विषय अध्ययन

प्रथम विश्व युद्ध में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित भरतीय चत्ता सिंह

प्रथम विश्वयुद्ध में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित चत्ता सिंह की कहानी।

Chatta Singh

Credit: USI - CAFHR

प्रथम विश्वयुद्ध में भरत के 6 वीरों को ब्रिटेन के सर्वोच्च वीरता सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। वार्षिक स्मरणोत्सव के रूप में ब्रिटेन के लोगों ने उन वीरों के नाम वाले कांस्य स्मरण पट्टिका उनके मूल देश को भेंट कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। यह आर्काइव उनकी गाथा सुनाता है।

नाम: चत्ता सिंह

जन्म: 1886

जन्म स्थान: कानपुर, उत्तर प्रदेश, भरत

युद्ध की तारीख: 13 जनवरी 1916

युद्ध का स्थान: टिग्रिस (दजला) नदी का तट, मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक)

###रैंक: सिपाही

रेजिमेंट: 9वीं भोपाल इनफैंट्री, भरतीय थल सेना

चत्ता सिंह का जन्म 1886 में भरत के उत्तर प्रदेश में हुआ था और वह प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भरतीय थल सेना की 9वीं भोपाल इनफैंट्री में सिपाही थे।

चत्ता सिंह को 13 जनवरी 1916 को मेसोपोटामिया (आज के इराक) में वादी की लड़ाई में दिखाई गई उनकी अद्भुत वीरता के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। वह अपने कमांडिंग ऑफिसर को बचाने के लिए, जो खुले में घायल पड़े थे, कवर से बाहर निकल गए। उन्होंने उनके घाव का उपचार किया और पांच घंटे तक, जब तक कि उनके लिए चलना सुरक्षित न हो गया, उनके साथ रहे और इस दौरान भारी गोली-बारी होती रही। उनकी प्रशस्ति में आगे विवरण है:

खुले में घायल पड़े अपने असहाय कमांडिंग ऑफिसर को बचाने के लिए कवर छोड़ कर बाहर आने के अद्भुत वीरता और कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए। सिपाही चत्ता सिंह ने ऑफिसर के घाव पर पट्टी बांधी और फिर उनकी सुरक्षा के लिए अपने खाई खोदने वाले औजार से उनके लिए सुरक्षा गड्ढा खोदा और इस संपूर्ण कार्य के दौरान राइफलों से हो रही भारी गोली-बारी के बीच जानलेवा असुरक्षा का सामना करते रहे। रात होने तक, पांच घंटे वह अपने घायल अधिकारी के पास बने रहे और खुले हिस्से की ओर से उन्हें अपने शरीर की आड़ देकर बचाते रहे। फिर, रात के अंधेरे के आवरण में वह वापस जाकर मदद लेकर आए और अपने ऑफिसर को सुरक्षित ले गए।

चत्ता सिंह ने बाद में हवलदार (सार्जेंट पद के समकक्ष) का ओहदा हासिल किया। उनकी मृत्यु 1961 में भरत में कानपुर के तिलसरा में हुई।

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प्रकाशित 20 जून 2016